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Showing posts from September, 2019

नाभिदर्शना अप्सरा

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जीवन्त साधकों की….. जीवन्त साधना… नाभिदर्शना अप्सरा प्रेम, सौन्दर्य, मधुरता, रस, आनन्द साकार स्वरूप प्रत्येक साधक के मन में अप्सरा साधना करने की इच्छा कभी न कभी जरूर होती है और हो भी क्यों न? शायद कोई पत्थर ही होगा जो रूप की अगाध राशि के दर्शन को लालायित नहीं होगा, सृष्टि में जो भी सत्य है, वह शिवमय है जिसमें भी शिव मौजूद हैं, वह सुन्दर है। अप्सरा तो रूप की खान है, एक ऐसा सौन्दर्य जो मृतप्रायः व्यक्तियों में भी प्राण और ऊर्जा का नया संचार कर दे। झील सी गहरी आंखें जिनमें प्रेम का भाव प्रतिपल डूबता और उतरता है, रस से भरे अधखुले अधर जिनके स्पर्श से जीवन की सारी त्रासदियां उड़नछू हो जाती हैं, फिर, विरला ही कोई साधक होगा जो ऐसी रूपसी सहचरी का कुछ क्षणों के लिये साथ नहीं चाहेगा। जीवन तो क्षणों में जीया जाता है, बाकी समय तो सिर्फ उत्तरदायित्त्व निभाने में खप जाता है। हर कोई जो साधक है, उसके मन में सौन्दर्य का रस हिलोरें लेता है, बिना सौन्दर्य को जांचे-परखे कोई साधक साधना में ऊपर की ओर उठ नहीं सकता है क्योंकि साधक जिज्ञासु हैं। साधक सौन्दर्यबोध से ओत-प्रोत हैं और अप्सरा रूप की देवी

शुक्र ग्रह का विवेचन

शुक्र ग्रह का विवेचन नवग्रह सभी मनुष्यों के जीवन को प्रभावित करते हैं। जीवन में जो भी सुख के क्षण या दुःख के बादल घिरते हैं, वे नवग्रह से प्रभावित होते हैं। जब सूर्य का सकारात्मक प्रभाव होता है तब आप सम्मान प्राप्त करते हैं, मंगल शौर्य देता है, चन्द्रमा मानसिक शान्ति देता है। बुध की उत्तम दशा में कार्य कुशलता आती है। गुरु के उत्तम प्रभाव से ज्ञान आता हैं। शनि शुभ होते हैं तो कार्य शीघ्रता से सम्पन्न होते हैं, पर शुक्र की शुभता प्राप्त हो जाए तो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सभी कुछ मिल जाता है। ऐसी है, शुक्र की माया जिससे साधक और जन-साधारण सब प्रभावित होते है। चलिए विश्‍लेषण करते हैं शुक्र के प्रभाव का, इस आलेख में। बहुत संभव है शुक्र साधना द्वारा जीवन को शुभता की ओर मोड़ कर सभी अर्थों में समृद्ध करने का। शुक्र साधना जीवन से क्या अपेक्षाएं रखते हैं आप? साधारणतः प्रत्येक मनुष्य चाहता है कि उसके रूप और वाणी में ओज हो, व्यक्तित्व में आकर्षण हो और लोग उससे बात करने के लिए, उसके सान्निध्य के लिए लालायित रहें। सीधे-सादे शब्दों में उसके व्यक्तित्व में चुम्बकीय आकर्षण हो और जो उसे एक बार द

वसुधा लक्ष्मी साधना

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वसुधा लक्ष्मी साधना सामान्य रूप से लक्ष्मी का तात्पर्य धन, अर्थात् रुपया, पैसा मान लिया गया है। जबकि यह अपने आप में एक अत्यन्त सीमित अर्थ है। लक्ष्मी की पूर्णता को समझने के लिये उसके स्वरूपों को समझना आवश्यक है। लक्ष्मी के अष्ट स्वरूप हैं जिसमें धन लक्ष्मी, भू-लक्ष्मी, सरस्वती लक्ष्मी, प्रीति लक्ष्मी, कीर्ति लक्ष्मी, शान्ति लक्ष्मी, तुष्टि लक्ष्मी और पुष्टि लक्ष्मी सम्मिलित हैं। जीवन को आनन्द पूर्वक चलाने के लिये इन अष्ट स्वरूपों का संयोजन आवश्यक है। लक्ष्मी के इन अष्ट स्वरूपों में एक महत्वपूर्ण स्वरूप है – भू-लक्ष्मी अर्थात् भवन लक्ष्मी अर्थात् वसुधा लक्ष्मी। किसी भी बुधवार अथवा सिद्ध योग पर इस महत्वपूर्ण साधना को सम्पन्न किया जा सकता है। साधना दिवस पर साधक प्रातःकाल अपनी दैनिक गुरु साधना पूर्ण कर पीले रंग के आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुंह कर बैठें। अपने सामने एक थाली पर कुंकुम से स्वास्तिक बनाएं। स्वास्तिक में चार सुपारी स्थापित करें। मध्य में एक अक्षत की ढेरी बनाकर उसमें पुष्प रखें, पुष्प के ऊपर मंत्र सिद्ध प्राणप्रतिष्ठायुक्त भूमि सिद्धि भव सिद्धि प्राणश्‍चेतना मंत्रों से अन

भैरव तीव्र वशीकरण सम्मोहन प्रयोग

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भैरव तीव्र वशीकरण सम्मोहन प्रयोग नौकरी, व्यापार, जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं कि आप चाह कर भी किसी को अपनी बात स्पष्ट नहीं कर पाते। ऐसे कई लोग हैं जिनको इस बात का दुःख होता है कि जीवन में उन्हें ‘चांस’ नहीं मिला। अक्सर लोग इस बात को कहते हैं कि – उसे अपनी बात कहने का अवसर ही प्राप्त नहीं हुआ, इसलिये काम नहीं हुआ। जीवन में आने वाले अवसरों अर्थात् ‘चांस’ को सुअवसर में बदलने के लिये सम्पन्न करें भगवान भैरव का यह अति विशिष्ट वशीकरण प्रयोग। जिसको सम्पन्न करने के पश्‍चात् आप जिस किसी को भी अपने वश में करना चाहते हैं अथवा अपनी बात को उसके सामने स्पष्ट करना चाहते हैं कर सकते हैं। यह प्रयोग बालक-वृद्ध, स्त्री-पुरुष किसी पर भी सम्पन्न किया जा सकता है। भगवान भैरव का तंत्र वशीकरण प्रयोग कोई टोटका नहीं बल्कि शुद्ध तंत्र प्रयोग है जिसका प्रभाव तत्काल रूप से देखा जा सकता है। साधना विधान तंत्र वशीकरण प्रयोग किसी भी रविवार अथवा मंगलवार को सम्पन्न किया जा सकता है। यह रात्रिकालीन प्रयोग है जिसे रात्रि में 10 बजे के बाद ही सम्पन्न करना चाहिए। इस प्रयोग हेतु  मंत्रसिद्ध प्र