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Showing posts from May, 2020

लक्ष्मी प्राप्ति की सिद्ध तंत्र विधियाँ और मंत्र

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लक्ष्मी प्राप्ति की सिद्ध तंत्र विधियाँ और मंत्र 🙏🏻🙏🏻💐जय गुरु मच्छिंद्रनाथ💐🙏🏻🙏🏻 आप सभी को गुरु बालकनाथ जी का आदेश! हम आज आपके लिए लक्ष्मी प्राप्ति साधना मंत्र,  विधि, के संदर्भ में विशेष जानकारी लेकर आए है!  तो चलिए साधना मंत्र विधि शुरु करते है इस शाबर मंत्र को मंगलवार को सूर्यौदय के समय शुरू करें | इस शाबर मंत्र को आप दीपावली की रात एक हजार बार मंत्र का जाप करना होगा। ध्यान रहे दीपावली की रात मंत्र जाप का 100 गुना फल मिलता है इसलिये आपको सिर्फ  एक हजार बार ही जाप करना होगा। लक्ष्मी माता मंत्र:-                         जय माई वैभव लक्ष्मी समुद्र की पुत्री क्षीरसागर में रहने वाली विष्णु पत्नी मेरी अरज सुनो मेरा भाग्य बदलो अचानक धन लेकर आओ भलाई जागृत हो कर कृपा करो माई ना करो तो गुरु गोरखनाथ गुरु मच्छिंद्रनाथ की दुहाई छु तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या है। विश्वास है कि तंत्र ग्रंथ भगवान शिव के मुख से आविर्भूत हुए हैं। उनको पवित्र और प्रामाणिक माना गया है। हमने यहाँ तंत्र द्वारा लक्ष्मी प्राप्ति के लिए विभिन्न सिद्ध तंत्र विधिय

अप्सराएं कितने होती है (साधना और मंत्र विशेष)

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🙏🏻🙏🏻💐जय गुरु मच्छिंद्रनाथ💐🙏🏻🙏🏻 आप सभी को गुरु बालकनाथ जी का आदेश! हम आज आपके लिए अप्सरा साधना की मंत्र विधि, के संदर्भ में विशेष की जानकारी लेकर आए है! तो चलिए साधना मंत्र विधि शुरु करते है!  अप्सराएं, कितनी है जानते है ! पौराणिक शास्त्रों के अनुसार अप्सरा देवलोक में रहने वाली अनुपम, अति सुंदर, अनेक कलाओं में दक्ष, तेजस्वी और अलौकिक दिव्य स्त्री है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि देवी, परी, अप्सरा, यक्षिणी, इन्द्राणी और पिशाचिनी आदि कई प्रकार की स्त्रियां हुआ करती थीं। उनमें अप्सराओं को सबसे सुंदर और जादुई शक्ति से संपन्न माना जाता है।  अप्सराएं कितनी प्रकार होती है? शास्त्रों के अनुसार देवराज इन्द्र के स्वर्ग में 11 अप्सराएं प्रमुख सेविका थीं। ये 11 अप्सराएं हैं- कृतस्थली, १)पुंजिकस्थला, २)मेनका, ३)रम्भा, ४)प्रम्लोचा, ५)अनुम्लोचा, ६)घृताची, ७)वर्चा, ८)उर्वशी, ९)पूर्वचित्ति  १०)तिलोत्तमा ११)कृतस्थली! इन सभी अप्सराओं की मुख्य अप्सरा रम्भा थीं। अलग-अलग मान्यताओं में अप्सराओं की संख्या 108 से लेकर 1008 तक बताई गई है। कुछ नाम और- अम्बिक

शालिग्राम

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शालिग्राम:-  पद्मपुराण के अनुसार - गण्डकी अर्थात नारायणी नदी के एक प्रदेश में शालिग्राम स्थल नाम का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है; वहाँ से निकलनेवाले पत्थर को शालिग्राम कहते हैं। शालिग्राम शिला के स्पर्शमात्र से करोड़ों जन्मों के पाप का नाश हो जाता है। फिर यदि उसका पूजन किया जाय, तब तो उसके फल के विषय में कहना ही क्या है; वह भगवान के समीप पहुँचाने वाला है। बहुत जन्मों के पुण्य से यदि कभी गोष्पद के चिह्न से युक्त श्रीकृष्ण शिला प्राप्त हो जाय तो उसी के पूजन से मनुष्य के पुनर्जन्म की समाप्ति हो जाती है। पहले शालिग्राम-शिला की परीक्षा करनी चाहिये; यदि वह काली और चिकनी हो तो उत्तम है। यदि उसकी कालिमा कुछ कम हो तो वह मध्यम श्रेणी की मानी गयी है। और यदि उसमें दूसरे किसी रंग का सम्मिश्रण हो तो वह मिश्रित फल प्रदान करने वाली होती है। जैसे सदा काठ के भीतर छिपी हुई आग मन्थन करने से प्रकट होती है, उसी प्रकार भगवान विष्णु सर्वत्र व्याप्त होने पर भी शालिग्राम शिला में विशेष रूप से अभिव्यक्त होते हैं। जो प्रतिदिन द्वारका की शिला-गोमती चक्र से युक्त बारह शालिग्राम मूर्तियों का पूजन करता है, वह वैक

फसे हुये धन को प्राप्त करने के लिए

फसे हुये धन को प्राप्त करने के लिये। कई बार लोग किसी की मदद के लिए, दुकान, मकान, प्लाट या किसी रोजगार, किसी कंपनी या किसी सरकारी विभागों से कोई काम निकलवाने के धन दे देते है या अपना ही धन किसी के पास रखवा देते है लेकिन समय पर वह व्यक्ति आपका धन नहीं लौटाता है या आपका वह काम भी नहीं होता है और आपको आपका दिया धन भी नहीं वापस मिल पाता है तब बहुत ज्यादा मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है । धन वापस मिलने के सारे प्रयास विफल होते है, सम्बन्ध भी ख़राब हो जाते है । तब जब आपको सारे उपायों में असफलता मिले और आपको सारे रास्ते बंद नज़र आये तो ऐसी परिस्तिथियों में आप ये साधना भगवान पर पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करें , आपको अवश्य ही लाभ नज़र आएगा। यदि आपका धन किसी के पास फंस गया है और वह उसे वापस नहीं कर रहा । अपना डूबा हुआ धन प्राप्त करने के लिए आपको ये साधना करना जरुरी है। धीरे धीरे आपके धन की वापसी होने लगेगी। यह साधना बहुत ही कारगर है इसे बिलकुल चुपचाप पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से करना चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि धैर्य बनाये रखना चाहिए । मुझे पुर्ण विश्वास है आपका फसा हुआ धन आपको पुनः व

शक्तिपात दीक्षा (अमृत कुंडलिनी) साधना

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शक्तिपात दीक्षा (अमृत कुंडलिनी )साधना. इतिहास नाथ सम्प्रदाय से लिखा जाएगा,शक्तिपात शाबर मंत्रों से ही किया जाएगा. शाबर मंत्र के शक्ति के माध्यम से मनुष्य के शरीर के सभी चक्रों में अपार ऊर्जा का संचार होता है,सबसे पहले मूलाधार चक्र से अमृत को उठाकर सहस्त्र धार चक्र की ओर ले जाया जाता है,इसके बाद अमृत अर्थात वीर्य सहस्रार चक्र में पहुंचकर अमृत रूपी रसायन में बदल जाता है. इसके बाद अमृत रूपी रसायन इडा पिंगला सुषुम्ना नाड़ी में प्रवाहित होता है,इन तीनों नाडियो से 12 नाडियो में प्रवाहित होता है,इसके बाद 108 नाड़ियों में अमृत रूपी रसायन प्रवाहित होता है. 108 नाड़ीयो में प्रवाहित होने के बाद इसको 72000 नाड़ीयो में पहुंचाया जाता है,इसी तरह मूलाधार से विशुद्ध चक्र में प्रवाहित किया जाता है इसी तरह मूलाधार से अनाहत चक्र हृदय चक्र में प्रवाहित किया जाता है. इसी तरह मूलाधार से मणिपुर चक्र में प्रवाहित किया जाता है इसी तरह मूलाधार से स्वाधिष्ठान चक्र में प्रवाहित किया जाता है इन सभी चक्रों का संबंध इडा पिंगला सुषुम्ना नाड़ी ओं से होता है.सभी चक्रों द्वारा अमृत स्त्राव 72000 नाड