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Showing posts from March, 2019

श्रीविद्या

श्रीविद्या (shri vidya) तंत्र के क्षेत्र में श्रीविद्या को निर्विवाद रूप से सर्वश्रेष्ठ तथा सबसे गोपनीय माना जाता है. श्रीविद्या की साधना का सबसे प्रमुख साधन है श्रीयंत्र... इसकी विशिष्टता का अनुमान इसी बात से लगाया जाता है कि सनातन धर्म के पुनरूद्धारक, भगवान शिव का अवतार माने जाने वाले, जगद्गुरू आदि शंकराचार्य ने जिन चार पीठों की स्थापना की, उनमें उन्होने पूरी प्रामाणिकता के साथ श्रीयंत्र की स्थापना की. जिसके परिणाम के रूप में आज भी चारों पीठ हर दृष्टि से, फिर वह चाहे साधनात्मक हो या फिर आर्थिक, पूर्णता से युक्त हैं. श्रीयंत्र प्रमुख रूप से ऐश्वर्य तथा समृद्धि प्रदान करने वाली महाविद्या त्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी का सिद्ध यंत्र है. यह यंत्र सही अर्थों में यंत्रराज है. इस यंत्र को स्थापित करने का तात्पर्य श्री को अपने संपूर्ण ऐश्वर्य के साथ आमंत्रित करना होता है. जो साधक श्रीयंत्र के माध्यम से त्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी की साधना के लिए प्रयासरत होता है, उसके एक हाथ में सभी प्रकार के भोग होते हैं, तथा दूसरे हाथ में पूर्ण मोक्ष होता है. आशय यह कि श्रीयंत्र का साधक समस्त प्रकार के भोग

शक्तिशाली नवरत्न.

शक्तिशाली नवरत्न. ऋग्वेद को सबसे प्राचीन ग्रन्थ कहा जाता है| ऋग्वेद के प्रथम मन्त्र में ही रत्न शब्द विद्यमान है| अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम| होतारं रत्न धातमं|| ---(ऋग्वेद/१/१) इस मन्त्र में ध्यान देने वाली बात यह है कि परमात्मा को ‘रत्नधातम’ कहा है अर्थात् रत्नों को धारण करने वाला वह स्वयं ही है| वस्तुतः यह स्पष्ट होता है कि रत्नों में अग्नि रश्मि के रूप में विधमान है । कोनसा रत्न कब धारण करना चाहिये,यह जानना जरुरी है। क्युके येसे ही किसीने बोल दिया और उसे धारण कर लिया तो येसे स्थिति मे आवश्यक लाभ प्राप्त नही होते है। महत्वपूर्ण बात ये भी है के रत्न कितने रत्ती का पहेना जाये ? यह तो हम कुण्डली को देखकर ही समज सकते परन्‍तु यहा मै आपको सामान्य जानकारी दे रहा हू जो आपके लिये सहायक है। *  सूर्य को शक्तिशाली बनाने में माणिक्य का परामर्श दिया जाता है। 3 रत्ती के माणिक को स्वर्ण की अंगूठी में, अनामिका अंगुली में रविवार के दिन पुष्य योग में धारण करना चाहिए। * चंद्र को मोती पहनने से शक्तिशाली बनाया जा सकता है, जो 2, 4 या 6 रत्ती की चांदी की अंगूठी में शुक्ल-पक्ष सोमवार र

प्रचण्ड - चण्डीका साधना

प्रचण्ड-चण्डीका साधना. दस महा विद्याओं में छिन्नमस्तिका माता छठी महाविद्या कहलाती हैं। छिन्नमस्तिका देवी को मां चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है। मार्कण्डेय पुराण व शिव पुराण आदि में देवी के इस रूप का विस्तार से वर्णन किया गया है , इनके अनुसार जब देवी ने चण्डी का रूप धरकर राक्षसों का संहार किया। दैत्यों को परास्त करके देवों को विजय दिलवाई तो चारों ओर उनका जय घोष होने लगा। परंतु देवी की सहायक योगिनियाँ अजया और विजया की रुधिर पिपासा शांत नहीँ हो पाई थी, इस पर उनकी रक्त पिपासा को शांत करने के लिए माँ ने अपना मस्तक काटकर अपने रक्त से उनकी रक्त प्यास बुझाई। इस कारण माता को छिन्नमस्तिका नाम से पुकारा जाने लगा। छिन्नमस्तिका देवि को तंत्र शास्त्र मे प्रचण्ड चण्डीका और चिंतपुर्णी माता जी भी कहा जाता है। साधना विधी-विधान:- शाम के समय किसी भी प्रदोषकाल में पूजा घर में दक्षिण/पश्चिम मुखी होकर नीले रंग के आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने लकड़ी के पट्टे पर नीला वस्त्र बिछाकर उस पर छिन्नमस्ता यंत्र (जो ताम्रपत्र पर अंकित हो) स्थापित कर बाएं हाथ में काले नमक की डली लेकर दाएं हाथ से काले हकीक अथवा रुद

स्पॉन्डिलाइटिस

स्पॉन्डिलाइटिस  हमारी मॉडर्न लाइफस्टाइल में कुछ बीमारियां ऐसी हैं जो लंबे समय तक हमारा साथ नही छोड़ती। जिनमें से एक है स्पोंडिलोसिस की बीमारी। स्पोंडिलोसिस को हम स्पॉन्डिलाइटिस के नाम से भी जानते है।स्पोंडिलोसिस दो यूनानी शब्द ‘स्पॉन्डिल’ तथा ‘आइटिस’ से मिलकर बना है। स्पॉन्डिल का अर्थ है वर्टिब्रा तथा ‘आइटिस’ का अर्थ सूजन होता है इसका मतलब वर्टिब्रा यानी रीढ़ की हड्डी में सूजन की शिकायत को ही स्पॉन्डिलाइटिस कहा जाता है। इसमें पीड़ित को गर्दन को दाएं- बाएं और ऊपर-नीचे करने में काफी दर्द होता है। स्पोंडिलोसिस की समस्या आम तौर पे स्पाइन यानी रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करती है। स्पोंडिलोसिस रीढ़ की हड्डियों की असामान्य बढ़ोत्तरी और वर्टेबट के बीच के कुशन में कैल्शियम की कमी और अपने स्थान से सरकने की वजह से होता है। आमतौर पर इसके शिकार 40 की उम्र पार कर चुके पुरुष और महिलाएं होती हैं। आज की जीवनशैली में बदलाव के कारण युवावस्था में ही लोग स्पॉन्डिलाइटिस जैसी समस्याओं के शिकार हो रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या का सबसे प्रमुख कारण गलत पॉश्चर है, जिससे मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है। इसक