नाभिदर्शना अप्सरा
जीवन्त साधकों की….. जीवन्त साधना… नाभिदर्शना अप्सरा प्रेम, सौन्दर्य, मधुरता, रस, आनन्द साकार स्वरूप प्रत्येक साधक के मन में अप्सरा साधना करने की इच्छा कभी न कभी जरूर होती है और हो भी क्यों न? शायद कोई पत्थर ही होगा जो रूप की अगाध राशि के दर्शन को लालायित नहीं होगा, सृष्टि में जो भी सत्य है, वह शिवमय है जिसमें भी शिव मौजूद हैं, वह सुन्दर है। अप्सरा तो रूप की खान है, एक ऐसा सौन्दर्य जो मृतप्रायः व्यक्तियों में भी प्राण और ऊर्जा का नया संचार कर दे। झील सी गहरी आंखें जिनमें प्रेम का भाव प्रतिपल डूबता और उतरता है, रस से भरे अधखुले अधर जिनके स्पर्श से जीवन की सारी त्रासदियां उड़नछू हो जाती हैं, फिर, विरला ही कोई साधक होगा जो ऐसी रूपसी सहचरी का कुछ क्षणों के लिये साथ नहीं चाहेगा। जीवन तो क्षणों में जीया जाता है, बाकी समय तो सिर्फ उत्तरदायित्त्व निभाने में खप जाता है। हर कोई जो साधक है, उसके मन में सौन्दर्य का रस हिलोरें लेता है, बिना सौन्दर्य को जांचे-परखे कोई साधक साधना में ऊपर की ओर उठ नहीं सकता है क्योंकि साधक जिज्ञासु हैं। साधक सौन्दर्यबोध से ओत-प्रोत हैं और अप्सरा रूप की देवी...