बिजोत्क उच्छिष्ट गणपति साधना.

बिजोत्क उच्छिष्ट गणपति साधना.
विश्वामित्र ने एक स्थान पर लिखा है कि जीवन का पूर्ण सौभाग्य फल उच्छिष्ट गणपति प्रयोग है। महर्षि वशिष्ठ ने उच्छिष्ट गणपति साधना को जीवन की पूर्ण साधना कहा है। मात्र इस प्रयोग से
जीवन में वह सब कुछ प्राप्त हो जाता है, जो अभीष्ट लक्ष्य होता है। इच्छाएं, भावनाएं और मनोरथ पूरे होते हैं। विश्वमित्र संहिता के अनुसार, साधक को हाथो हाथ प्राप्त होते है। कई बार देखा गया है कि इधर साधना संपन्न होती है और उधर सफलता की भी प्राप्ति संभव होने लगती है।

साधना के कुछ लाभ निम्न हैं: -

समस्त कर्जों की समाप्ति और दरिद्रता का निवारण - निरंतर आर्थिक-व्यापारिक उन्नति - लक्ष्मी प्राप्ति और उसका पूर्ण उपभोग - भगवान गणपति के प्रत्यक्ष दर्शनों की संभावना - प्रबल इच्छा और उसकी पूर्णता का मार्ग प्रशस्त होता है एल शास्त्रों में कहा गया है कि यह प्रयोग किसी भी बुधवार को संपन्न किया जा सकता है। परंतु गणपति सिद्धि दिवस, यानी भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी शीघ्र सफलतादायक हैं। शास्त्रों के अनुसार यह प्रयोग दिन, या रात्रि में, कभी भी संपन्न किया जा सकता है। जीवन में जो इच्छाएं पूर्ण हों, उन इच्छाओं, या अभावों की पूर्ति को ही उच्छिष्ट कहा गया है।

सर्वत्र एवं सर्वप्रथम समस्त पूजा आदि मांगलिक कार्यों में तथा समस्त सांसारिक कार्यों में विघ्न नाश हेतु तथा कार्य कि परिपूर्णता हेतु भगवान गणपति का स्मरण किया जाता है I काम, क्रोध आदि आंतरिक शत्रु होँ अथवा रोजमर्रा के जीवन में उपस्थित होने वाले अडचन रूपी बाह्य शत्रु होँ I दोनों के निवारण हेतु सर्वप्रथम भगवान गणेश जी का स्मरण किया जाता है I गणेश जी की उपासना से ही भगवान विष्णु ने मधु- कैटभ का वध किया I गणेश
जी के वार से ही शिव जी ने त्रिपुरा सुर का वध किया I भगवती दुर्गा जी ने भी गणेश जी की वंदना करके महिषासुर का वध किया I जम्भासुर का वध करके गणेश जी ने ब्रह्मा-विष्णु-महेश की सहायता की I सिन्दुरासुर ने जब पार्वती जी का हरण किया तो "मयुरेश गणेश जी" ने अवतार लेकर उनके कष्टों को हरा I

एक समय जब कामदेव की भस्मी से उत्पन्न हुए भंडासुर नाम के महाप्रतापी दैत्य ने ब्रह्मा-विष्णु-महेश सहित सभी देवों को परास्त कर दिया, नए- नए लोकों की रचना की और उससे लड़ने वाली माँ
त्रिपुर सुन्दरी की सेना को भी जब उसने अपने माया तन्त्र से सम्मोहित कर दिया तो उस समय माँ के स्मरण करने पर भगवान गणेश जी का "हरिद्रा गणपति" नाम का तन्त्र स्वरुप प्रकट हुआ एवं राक्षस
के बनाए मायामय विघ्न यन्त्र को तोड़कर माँ त्रिपुर सुन्दरी को जितने में सहायता प्रदान की I

ऐसे अनेक लीलाओं को सम्पन्न करने वाले भगवान गणेश जी को तन्त्र, मन्त्र एवं यंत्रों को सिद्ध करने से पहले पूजना चाहिए I शास्त्रों में भगवान गणेश जी के अनेक विधान दिए हुए हैं जिनको सम्पन्न करके आप सांसारिक एवं दैवी सिद्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं l

प्राचीन ग्रंथों में इस बात का उल्लेख आता है कि पुराने समय में गणपति के इस स्वरूप या उच्छिष्ट चाण्डालिनी की साधना करने वाले अल्प भोजन से हजारों लोगों का भंडारा कर देते थे। कृत्या
प्रयोग में इससे रक्षा होती है। गणेशजी के इस स्वरूप की पूजा, अर्चना और साधना से उच्च पद और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

कुछ विशेष प्रयोग:-

* वशीकरण के लिए लौंग और इलायची का प्रयोग करना चाहिए।

* किसी भी फल की कामना के लिए सुपारी का प्रयोग करना चाहिए।

* अन्न या धन वृद्धि के लिए गुड़ का प्रयोग करना चाहिए।

* सर्वसिद्धि के लिए ताम्बुल का प्रयोग करना चाहिए।

*नौकरी प्राप्ती हेतु गुड का प्रयोग करे l




विनियोग:-

ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषि:, विराट छन्द:, श्री उच्छि गणपति देवता, मम अभीष्ट (जो भी कामना हो) या सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग:।




न्यास:-

ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषि: नम: शिरीसे।

विराट छन्दसे नम: मुखे।

उच्छिष्ट गणपति देवता नम: हृदये।

सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नम:
सर्वांगे।





ऐसा कहकर निर्दिष्ट अंगों पर हाथ लगाएं...




अंग न्यास:-

ॐ हस्ति अंगुष्ठाभ्यां नम: हृदयाय नम:

ॐ पिशाचि तर्जनीभ्यां नम: शिरसे स्वाहा

ॐ लिखे मध्यमाभ्यां नम: शिखाये वषट्

ॐ स्वाहा अनामिकाभ्यां नम: कवचाय हुँ

ॐ हस्ति पिशाचि लिखे कनिष्ठकाभ्यां नम: नैत्रत्रयाय वोषट्

ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा करतल कर
पृष्ठाभ्यां नम: अस्त्राय फट्




ध्यान:-

।। रक्त वर्ण त्रिनैत्र, चतुर्भुज, पाश, अंकुश, मोदक पात्र तथा हस्तिदंत धारण किए हुए। उन्मत्त गणेशजी का मैं ध्यान करता हूं।



कृष्ण चतुर्दशी से लेकर शुक्ल चतुर्दशी तक आठ हजार जप नित्य कर दशांस हवन करें। भोजन से पूर्व गणपति के निमित्त ग्रास निकालें। ऐसी मान्यता है कि
उच्छिष्ट गणपति की आराधना से कुबेर को नौ निधियां प्राप्त हुई थीं और विभिषण लंकापति बने थे।



मंत्र:-
ll ओम गं हस्ति पिशाची लिखे स्वाहा ll

om gang hasti pishachi likhe swaha

इसमे "गं" बीज लगाने से इस मंत्र का प्रभाव बढता है.





अंत में बलि प्रदान करें और बलि अनार या गुडहल के पुष्प का देना है।

बलि मंत्र:-
ॐ गं हं क्लौं ग्लौं उच्छिष्ट गणेशाय
महायक्षायायं बलि:।


उच्छिष्ट गणपति की साधना में साधक का मुंह जूंठा होना चाहिए। जैसे पान, इलायची, सुपारी आदि कोई चीज साधना के समय मुंह में होनी चाहिए। अलग-अलग कामना के लिए अलग-अलग वस्तु का प्रयोग करना चाहिए।


अन्य जानकारी प्राप्त करने हेतु आप हमे संपर्क करिये 
Email :- gurubalaknath@gmail.com
फोन: +91-7499778160
व्हाट्सएप: +91-7499778160

Popular posts from this blog

सियार सिंगी को सिद्ध करने की विधि

लोना चमारी साधना (साबर मंत्र)

गोरखनाथ वशीकरण सिद्धि