बटुक भैरव साधना (batuk bhairav sadhana )
बटुक भैरव साधना
जीवन में सुख और दुःख आते ही रहते हैं। जहां आदमी सुख प्राप्त होने पर प्रसन्न होता है, वहीं दुःख आने पर वह घोर चिन्ता और परेशानियों से घिर जाता है, परन्तु धैर्यवान व्यक्ति ऐसे क्षणों में भी शांत चित्त होकर उस समस्या का निराकरण कर लेते हैं।
कलियुग में पग-पग पर मनुष्य को बाधाओं, परेशानियों और शत्रुओं से सामना करना पड़ता है, ऐसी स्थिति में उसके लिए मंत्र साधना ही एक ऐसा मार्ग रह जाता है, जिसके द्वारा वह शत्रुओं और समस्याओं पर पूर्ण विजय प्राप्त कर सकता है, इस प्रकार की साधनाओं में ‘आपत्ति उद्धारक बटुक भैरव साधना’ अत्यन्त ही सरल, उपयोगी और अचूक फलप्रद मानी गई है, कहा जाता है कि भैरव साधना का फल हाथों-हाथ प्राप्त होता है।
भैरव को भगवान शंकर का ही अवतार माना गया है, शिव महापुराण में बताया गया है –
भैरवः पूर्णरूपो हि शंकरः परात्मनः।
मूढ़ास्ते वै न जानन्ति मोहिता शिवमायया।
देवताओं ने भैरव की उपासना करते हुए बताया है कि काल की भांति रौद्र होने के कारण ही आप ‘कालराज’ हैं, भीषण होने से आप ‘भैरव’ हैं, मृत्यु भी आप से भयभीत रहती है, अतः आप काल भैरव हैं, दुष्टात्माओं का मर्दन करने में आप सक्षम हैं, इसलिए आपको ‘आमर्दक’ कहा गया है, आप समर्थ हैं और शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले हैं।
आपदा-उद्धारक बटुक भैरव
‘शक्ति संगम तंत्र’ के ‘काली खण्ड’ में भैरव की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है कि ‘आपद’ नामक राक्षस कठोर तपस्या कर अजेय बन गया था, जिसके कारण सभी देवता त्रस्त हो गये, और वे सभी एकत्र होकर इस आपत्ति से बचने के बारे में उपाय सोचने लगे, अकस्मात् उन सभी के देह से एक-एक तेजोधारा निकली और उसका युग्म रूप पंचवर्षीय बटुक का प्रादुर्भाव हुआ, इस बटुक ने – ‘आपद’ नामक राक्षस को मारकर देवताओं को संकट मुक्त किया, इसी कारण इन्हें ‘आपदुद्धारक बटुक भैरव’ कहा गया है।
‘तंत्रालोक’ में भैरव शब्द की उत्पत्ति भैभीमादिभिः अवतीति भैरेव अर्थात् भीमादि भीषण साधनों से रक्षा करने वाला भैरव है, ‘रुद्रयामल तंत्र’ में दस महाविद्याओं के साथ भैरव के दस रूपों का वर्णन है और कहा गया है कि कोई भी महाविद्या तब तक सिद्ध नहीं होती जब तक उनसे सम्बन्धित भैरव की सिद्धि न कर ली जाय।
‘रुद्रयामल तंत्र’ के अनुसार दस महाविद्याएं और सम्बन्धित भैरव के नाम इस प्रकार हैं –
1. कालिका – महाकाल भैरव
2. त्रिपुर सुन्दरी – ललितेश्वर भैरव
3. तारा – अक्षभ्य भैरव
4. छिन्नमस्ता – विकराल भैरव
5. भुवनेश्वरी – महादेव भैरव
6. धूमावती – काल भैरव
7. कमला – नारायण भैरव
8. भैरवी – बटुक भैरव
9. मातंगी – मतंग भैरव
10. बगलामुखी – मृत्युंजय भैरव
भैरव से सम्बन्धित कई साधनाएं प्राचीन तांत्रिक ग्रंथों में वर्णित हैं, जैन ग्रंथों में भी भैरव के विशिष्ट प्रयोग दिये हैं। प्राचीनकाल से अब तक लगभग सभी ग्रंथों में एक स्वर से यह स्वीकार किया गया है कि जब तक साधक भैरव साधना सम्पन्न नहीं कर लेता, तब तक उसे अन्य साधनाओं में प्रवेश करने का अधिकार ही नहीं प्राप्त होता।
‘शिव पुराण’ में भैरव को शिव का ही अवतार माना है तो ‘विष्णु पुराण’ में बताया गया है कि विष्णु के अंश ही भैरव के रूप में विश्व विख्यात हैं, दुर्गा सप्तशती के पाठ के प्रारम्भ और अंत में भी भैरव की उपासना आवश्यक और महत्वपूर्ण मानी जाती है।
भैरव साधना के बारे में लोगों के मानस में काफी भ्रम और भय है, परन्तु यह साधना अत्यन्त ही सरल, सौम्य और सुखदायक है, इस प्रकार की साधना को कोई भी साधक कर सकता है।
भैरव साधना के बारे में कुछ मूलभूत तथ्य साधक को जान लेने चाहिये –
1. भैरव साधना सकाम्य साधना है, अतः कामना के साथ ही इस प्रकार की साधना की जानी चाहिए।
2. भैरव साधना मुख्यतः रात्रि में ही सम्पन्न की जाती है।
3. कुछ विशिष्ट वाममार्गी तांत्रिक प्रयोग में ही भैरव को सुरा का नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
4. भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य साधना के अनुरूप बदलता रहता है। मुख्य रूप से भैरव को रविवार को दूध की खीर, सोमवार को मोदक (लड्डू), मंगलवार को घी-गुड़ से बनी हुई लापसी, बुधवार को दही-चिवड़ा, गुरुवार को बेसन के लड्डू, शुक्रवार को भुने हुए चने तथा शनिवार को उड़द के बने हुए पकौड़े का नैवेद्य लगाते हैं, इसके अतिरिक्त जलेबी, सेव, तले हुए पापड़ आदिका नैवेद्य लगाते हैं।
साधना के लिए आवश्यक
ऊपर लिखे गये नियमों के अलावा कुछ अन्य नियमों की जानकारी साधक के लिए आवश्यक है, जिनका पालन किये बिना भैरव साधना पूरी नहीं हो पाती।
1. भैरव की पूजा में अर्पित नैवेद्य प्रसाद को उसी स्थान पर पूजा के कुछ समय बाद ग्रहण करना चाहिए, इसे पूजा स्थान से बाहर नहीं ले जाया जा सकता, सम्पूर्ण प्रसाद उसी समय पूर्ण कर देना चाहिए।
2. भैरव साधना में केवल तेल के दीपक का ही प्रयोग किया जाता है, इसके अतिरिक्त गुग्गुल, धूप-अगरबत्ती जलाई जाती है।
3. इस महत्वपूर्ण साधना हेतु मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त ‘बटुक भैरव यंत्र’ तथा ‘चित्र’ आवश्यक है, इस ताम्र यंत्र तथा चित्र को स्थापित कर साधना क्रम प्रारम्भ करना चाहिए।
4. भैरव साधना में केवल ‘काली हकीक माला’ का ही प्रयोग किया जाता है।
साधना विधान
इस साधना को बटुक भैरव सिद्धि दिवस (23 मई 2015) अथवा किसी भी रविवार को सम्पन्न किया जा सकता है। भैरव शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव हैं। साधकों को नियमानुसार वर्ष में एक-दो बार तो भैरव साधनाएं अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए।
साधना वाले दिन साधक रात्रि में स्नान कर, स्वच्छ गहरे रंग के वस्त्र धारण कर लें। अपना पूजा स्थल साधना के पूर्व ही धौ-पौछ कर साफ कर लें। भैरव साधना दक्षिणाभिमुख होकर सम्पन्न करने से साधना में शीघ्र सफलता प्राप्त होती है।
अपने सामने एक बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर सर्वप्रथम गुरु चित्र, गुरु विग्रह अथवा गुुरु चरण पादुका स्थापित करें। गुरु चित्र के निकट ही भैरव का चित्र अथवा विग्रह स्थापित कर दें। सर्वप्रथम गुरु चित्र का पंचोपचार पूजन सम्पन्न करें। उसके पश्चात् भैरव चित्र के सामने एक ताम्र प्लेट में कुंकुम से त्रिभुज बनाकर उस पर ‘बटुक भैरव यंत्र’ स्थापित कर दें।
भैरव साधना में तेल का ही दीपक प्रज्जवलित करना चाहिए। यंत्र स्थापन के पश्चात् बाजोट पर ही तेल का दीपक प्रज्ज्वलित कर उसका पूजन कुंकुम, अक्षत, पुष्प इत्यादि से करें।
इसके पश्चात् दोनों हाथ जोड़कर सर्वप्रथम बटुक भैरव का ध्यान करें-
बटुक भैरव ध्यान
वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्।
दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः॥
दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।
हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्॥
अर्थात् भगवान् श्री बटुक भैरव बालक रूप ही हैं। उनकी देह-कान्ति स्फटिक की तरह है। घुंघराले केशों से उनका चेहरा प्रदीप्त है। उनकी कमर और चरणों में नव-मणियों के अलंकार जैसे किंकिणी, नूपुर आदि विभूषित हैं। वे उज्ज्वल रूपवाले, भव्य मुखवाले, प्रसन्न-चित्त और त्रिनेत्र-युक्त हैं। कमल के समान सुन्दर दोनों हाथों में वे शूल और दण्ड धारण किए हुए हैं। भगवान श्री बटुक भैरव के इस सात्विक ध्यान से सभी प्रकार की अप-मृत्यु का नाश होता है, आपदाओं का निवारण होता है, आयु की वृद्धि होती है, आरोग्य और मुक्ति-पद लाभ होता है।
भगवान भैरव के ध्यान के बाल स्वरूप, आपदा उद्धारक स्वरूप के ध्यान के पश्चात् गंध, पुष्प, धूप, दीप, इत्यादि से निम्न मंत्रों के साथ ‘बटुक भैरव यंत्र’ का पूजन सम्पन्न करें –
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः।
ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः।
ॐ यं वायु तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे घ्रापयामि नमः।
ॐ रं अग्नि तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे निवेदयामि नमः।
ॐ सं सर्व तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः।
बटुक भैरव यंत्र पूजन के पश्चात् ‘काली हकीक माला’ से निम्न बटुक भैरव मंत्र की 7 माला मंत्र जप करें।
बटुक भैरव मंत्र
॥ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ स्वाहा॥
यह इक्कीस अक्षरों का मंत्र अत्यन्त ही महत्वपूर्ण माना गया है, एक दिवसीय इस साधना की समाप्ति के पश्चात् नित्य बटुक भैरव यंत्र अपने सामने स्थापित कर उसका संक्षिप्त पूजन कर एक माह तक नित्य उपरोक्त बटुक भैरव मंत्र की एक माला जप करने से साधक की मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
एक माह अर्थात् 30 दिन मंत्र जप के पश्चात् यंत्र एवं माला को जल में विसर्जित कर दें।
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