प्रचण्ड - चण्डीका साधना

प्रचण्ड-चण्डीका साधना.

दस महा विद्याओं में छिन्नमस्तिका माता छठी महाविद्या कहलाती हैं। छिन्नमस्तिका देवी को मां चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है। मार्कण्डेय पुराण व शिव पुराण आदि में देवी के इस रूप का विस्तार से वर्णन किया गया है , इनके अनुसार जब देवी ने चण्डी का रूप धरकर राक्षसों का संहार किया। दैत्यों को परास्त करके देवों को विजय दिलवाई तो चारों ओर उनका जय घोष होने लगा। परंतु देवी की सहायक योगिनियाँ अजया और विजया की रुधिर पिपासा शांत नहीँ हो पाई थी, इस पर उनकी रक्त पिपासा को शांत करने के लिए माँ ने अपना मस्तक काटकर अपने रक्त से उनकी रक्त प्यास बुझाई। इस कारण माता को छिन्नमस्तिका नाम से पुकारा जाने लगा। छिन्नमस्तिका देवि को तंत्र शास्त्र मे प्रचण्ड चण्डीका और चिंतपुर्णी माता जी भी कहा जाता है।

साधना विधी-विधान:-

शाम के समय किसी भी प्रदोषकाल में पूजा घर में दक्षिण/पश्चिम मुखी होकर नीले रंग के आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने लकड़ी के पट्टे पर नीला वस्त्र बिछाकर उस पर छिन्नमस्ता यंत्र (जो ताम्रपत्र पर अंकित हो) स्थापित कर बाएं हाथ में काले नमक की डली लेकर दाएं हाथ से काले हकीक अथवा रुद्राक्ष माला से 21 माला मंत्र जाप करना है और जाप पुर्ण होने तक आसन से उठना नही है। इस साधना मे सिर्फ निले रंग के आसन और वस्त्र का उपयोग करे अन्य रंग निषेध है। आप चाहे तो यह साधना किसी भी नवरात्रि मे 9 दिनो तक भी कर सकते है।

दाएँ हाथ मे जल लेकर विनियोग मंत्र बोलकर जल को जमीन पर छोड़ दे,यहा विनियोग मंत्र मे अगर किसी दुसरे व्यक्ति हेतु यह साधना करना हो तो उसका नाम "मम्" के जगह पर ले सकते है। विनियोग मे "अभिष्ट कार्य सिध्यर्थे" के जगह पर अपनी मनोकामना बोलना है।

विनियोग :-

अस्य श्री छिन्नमस्तिका मंत्रस्य भैरव ऋषि :
सम्राट छंद: , श्री छिन्नमस्ता देवता , ह्रींकार बीजं ,
स्वाहा शक्ति: , मम (अभिष्ट कार्य सिध्यर्थे ) जपे विनियोग : ।।

जिन्हे न्यास समज मे आते हो,वही लोग न्यास करे अन्य साधक बिना न्यास के भी साधना कर सकते है। सुशिल जी का कहेना है "अगर किसीको न्यास करने का ग्यान ना हो तो मुल मंत्र का जितना दिया हो उससे 1/10 मंत्र जाप ज्यादा करना चाहिये।

ऋष्यादिन्यास :-

ॐ भैरव ऋषिये नमः शिरसी ||१||
सम्राट छंन्दसे नमः मुखे ||२||
श्री छीन्नमस्ता देवतायै नमः हृदये ||३||
ह्रीं ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये ||४||
स्वाहा शक्तिये नमः पादयो: ||५||
विनियोगाय नमः सर्वांगे ||६||

करन्यास :-

ॐ आं खड्गाय स्वाहा अंगुष्ठाभ्याम् नमः ||१||
ॐ इं सुखदगाय स्वाहा तर्जनीभ्याम नमः||२||
ॐ ॐवज्राय स्वाहा माध्यमाभ्याम नमः ३||
ॐ ऐ पाशाय स्वाहा अनामिकाभ्याम नमः ||४||
ॐ औ अंकुशाय स्वाहा कनिष्ठकाभ्याम नमः ||५||
ॐ अ: सुरक्ष रक्ष ह्रीं ह्रीं स्वाहा करतलकर पृष्ठाभ्याम नमः||६||

हृदयादिन्यास :-

ॐ आं खड्गाय हृदयाय नमः स्वाहा ||१||
ॐ इं सुखदगाय शिरसे स्वाहा ||२||
ॐ ऊँ वज्राय शिखाये वष्ट स्वाहा ||३||
ॐ ऐ पाशाय कवचाय हूँ स्वाहा ||४||
ॐ औ अंकुशाय नेत्र त्रयाय वौषट स्वाहा ||५||
ॐ अ: सुरक्ष रक्ष ह्रीं ह्रीं अस्त्राय फट स्वाहा ||६||

व्यापक न्यास :-

ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐ वज्रवेरोचनियै ह्रींह्रीं फट स्वाहा मस्तकादी पाद पर्यंतम ||१||
ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐ वज्रवेरोचनियै ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा पादादी मस्त्कानतंम ||२||

इसके बाद ध्यान और माला पूजन करके मंत्र जाप प्रारंभ करेे।

ध्यान:-

प्रचण्ड चण्डिकां वक्ष्ये सर्वकाम फलप्रदाम्।
यस्या: स्मरण मात्रेण सदाशिवो भवेन्नर:।।


मंत्र :-

।। ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनियै ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा ।।

om shreem hreem hreem kleem aim vajra vairochaniyai hreem hreem phat swaahaa

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