बीर कंगण सिद्धि जागृती साधना

नोट:-(बीर कंगण बनाने की विधि अन्त मे बताई है कृपया ये ब्लॉग पुरा पढिये)
हिन्दू धार्मिक परंपरा में एक ओर जहां देव, नाग, गंधर्व, अप्सरा, विद्याधर, सिद्ध, यक्ष, यक्षिणी, भैरव, भैरवी आदि सकारात्मक शक्तियों की बात की गई है तो वहीं दैत्य, दानव, राक्षस, पिशाच, पिशाचिनी, गुह्मक, भूत, वेताल आदि नकारात्मक शक्तियों की साधना का उल्लेख भी मिलता है।
उसी तरह कुछ ऐसी भी शक्तियां हैं जिनकी जो सात्विक भाव से साधना करता है, वह उनको वैसा ही चमत्कार दिखाती हैं। उन्हीं में से एक है वीर या बीर साधना। सभी वीरों की शक्तियां एक-दूसरे से भिन्न हैं। ये अलग-अलग शक्तियों से संपन्न होते हैं। गुप्त नवरात्रि में और कुछ विशेष दिनों में बीर साधना की जाती है। बीर साधना को तांत्रिक साधना के अंतर्गत माना गया है। मूलत: 52 बीर हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं-
नोट:-(बीर सिद्धि जागृती मंत्र प्राप्त करने हेतु आप मुझे ई-मेल से संम्पर्क करे  )
01. क्षेत्रपाल बीर
02. कपिल बीर
03. बटुक बीर
04. नृसिंह बीर
05. गोपाल बीर
06. भैरव बीर
07. गरूढ़ बीर
08. महाकाल बीर
09. काल बीर
10. स्वर्ण बीर
11. रक्तस्वर्ण बीर
12. देवसेन बीर
13. घंटापथ बीर
14. रुद्रवीर बीर
15. तेरासंघ बीर
16. वरुण बीर
17. कंधर्व बीर
18. हंस बीर
19. लौन्कडिया बीर
20. वहि बी
21. प्रियमित्र बीर
22. कारु बीर
23. अदृश्य बीर
24. वल्लभ बीर
25. वज्र बीर
26. महाकाली बीर
27. महालाभ बीर
28. तुंगभद्र बीर
29. विद्याधर बीर
30. घंटाकर्ण बीर
31. बैद्यनाथ बीर
32. विभीषण बीर
33. फाहेतक बीर
34. पितृ बीर
35. खड्‍ग बीर
36. नाघस्ट बीर
37. प्रदुम्न बीर
38. श्मशान बीर
39. भरुदग बीर
40. काकेलेकर बीर
41. कंफिलाभ बीर
42. अस्थिमुख बीर
43. रेतोवेद्य बीर
44. नकुल बीर
45. शौनक बीर
46. कालमुख बीर
47. भूतबैरव बीर
48. पैशाच बीर
49. त्रिमुख बीर
50. डचक बीर
51. अट्टलाद बीर
52. वास्मित्र बीर
बीरों के विषय में सर्वप्रथम पृथ्वीराज रासो में उल्लेख है। वहां इनकी संख्या 52 बताई गई है।
इन्हें भैरवी के अनुयायी या भैरव का गण कहा गया है। इन्हें देव और धर्मरक्षक भी कहा गया है।
मूलत: ये सभी कालिका माता के दूत हैं।
उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब आदि प्रांतों में कई वीरों की मंदिरों में अन्य देवी और देवताओं के साथ प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।
राजस्थान में जाहर वीर, नाहर वीर, वीर तेजाजी महाराज आदि के नाम प्रसिद्ध हैं।
   बीर कंगण अष्ट धातु से बनाये जाते है :-
सोना, चाँदी, तांबा, रांगा, जस्ता, सीसा, लोहा, पारा (रस).
अष्टधातु का मुनष्य के स्वास्थ्य से गहरा सम्बंध है यह हृदय को भी बल देता है एवं मनुष्य की कितनी ही बीमारियों को दूर करता है। अष्ट धातु की अंगूठी
पहिनने पर या कड़ा धारण करने पर यह मानसिक तनाव को दूर कर मन में शान्ति लाता है। यहीं नहीं यह वात पित्त कफ का इस प्रकार सामंजस्य करती हैं कि बीमारियां कम एवं स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव होता है अष्ट धातु मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालता है। इससे व्यक्ति में तीव्र एवं सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ जाती है। धीरे-धीरे सम्पन्नता में वृद्धि होती है।
यह लाभ तो सिर्फ अष्टधातु के है और इसी अष्टधातु से बिर कंगण बनाया जाता है।आज मै यहा पर 52 बिर 64 योगिनी के कंगण के बारे मे लिख रहा हु।
जो शीघ्र फलप्रद कहा जाता है।इस कंगण से सिर्फ अच्‍छे कार्य करवाये जाते है और कार्य पुर्ण होने के बाद बिर को मिठाई का भोग दिया जाता है।यह बिर कंगण पुर्णत: सात्विक है जिसे स्त्री/पुरुष सिद्ध करके अपने और दुसरो के कार्यो को भी पुर्ण करवा सकते है।
जैसे के इससे पहले भी मै बता चुका हू "हम बिरो से कोइ भी काम करवा सकते है" और इसको सिद्ध करना बहोत आसान है।बिर कंगण शाबर मंत्रो के माध्यम से जागृत करके सिद्ध कर सकते है।जब बिर कंगण जागृत होता है तब हमे बिर वशीकरण ,सम्मोहन ,आकर्षण , मोहन ,उच्चाटन ,विद्वेषण ,शान्तिकर्म मे हमारे काम को कर देता है।आपको अगर किसी का भी कोइ काम करना हो तो आप बैठे जगह से दुरस्थ बैठे व्यक्ति का भी काम करवा सकते है।
बिर कोइ साधारण शक्ति नही है,देवताओ के स्मशानी ताकतो को ही बिर कहा जाता है।जैसे हनुमत बिर जो अत्याधिक शक्तिशाली माना जाता है क्युके हनुमानजी के स्मशानी ताकत को ही हनुमत बिर कहेते है। अब आप ही सोचिये येसा कोनसा कार्य है जो हनुमानजी नही कर सकते है। नाथ साम्प्रदाय मे हनुमानजी जी को सिद्ध जती नाम कि उपाधि प्राप्त है और ज्यादा से ज्यादा शाबर मंत्र उनसे ही सम्बन्धित है।इस प्रकार से अन्य 51 बिर भी बिर कंगण मे स्थापित किये गये है।
बिर कंगण निर्माण विधी-
बिर कंगण का निर्माण एक कठिन कार्य है परंतु सामान्य बिर कंगण को बनाना थोडा आसान है।इसमे अष्टधातु का प्रयोग होता है,जिनके मात्रा और मुल्य के बारे मे मै आपको अवगत करवा देता हू-
सोना- सव्वा दो ग्राम जिसका मुल्य 6,750 रुपये है।
चाँदी-सव्वा ग्यारह ग्राम जिसका मुल्य 500 रुपये है।
तांबा-400 रुपये का लगेगा।
रांगा-500 रुपये का लगता है।
जस्ता-600 रुपये लगता है।
सीसा-700 रुपये का लगता है।
लोहा-10 रुपये का लगता है।
पारा(रस)-1200 रुपये का लगता है।
कुल अष्टधातु का खर्च 10,660/- रुपये होता है।जिसमे कंगण निर्माण का खर्च 1000 रुपये लगेगा क्युके ये कंगण बनाने का कार्य अधिक परिश्रम युक्त है।जिसमे सर्वप्रथम अष्टधातु को अग्नि मे डालकर उसका पानी बनाया जाता है।उसके बाद एक गोल रिंग बनाना पड़ता है और उस रिंग के उपर बिरो के मुर्तियो को बिठाया जाता है।कंगण बानते समय कंगण बनाने वाला कारीगर कपडे नही पहन सकता है,उसे नग्न अवस्था मे बैठकर ही कंगण का निर्माण करना पडता है और एक बार वह निर्माण कार्य शुरु कर देता है तो उसको बीच मे छोडकर उठ नही सकता है,अब सबसे महत्वपूर्ण बात कंगण को जमीन पर नही रख सकते है जब तक बिर कंगण निर्माण पुर्ण नही होता है।
इसका न्योच्छावर राशी 11660 रुपये है,50 रुपये बैंक वाले ट्रान्सफर का चार्जेस लेते है,200 रुपये कोरियर के चार्जेस लगते है।कुल मिलाकर कर सामन्य आकार का बिर कंगण (52 बिर 64 जोगिनी) 11,910/-रुपये मे आप प्राप्त कर सकते है।
बीर कंगण और बीर जागृती मंत्र प्राप्त करने हेतु आप ई-मेल से संम्पर्क करे
gurubalaknath@gmail.com
आदेश...........
जय गुरू मच्छिंद्रनाथ

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