शव साधना
*शव साधना:* यह साधना रात्री काल कृष्ण पक्ष की अमावस्या मे,या कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष की चतुर्दशी और दिन मंगलवार हो तो शव साधना काफी महत्वपूर्ण हो जाती है,शव साधना के पूर्व ही ये जान लेना आवश्यक है के शव किस कोटी का है,क्योकों शव साधना के लिये किसी चांडाल या अकारण गए युवा व्यक्ति (२०-३५) अथवा दुर्घटना से मरे व्यक्ति का शव ज्यादा उपयुक्त मानते है,वृद्ध रोगी येसे लोगो के शव कोई काम मे नहीं आते है। सर्वप्रथम पूर्व दिशा की ओर अभिमुख होकर ‘फट मंत्र’ पढ़ना है, इसके बाद चारो दिशाए कीलने के लिये पूर्व दिशा मे अपने गुरु, पश्चिम मे बटुक भैरव , उत्तर मे योगिनी और दक्षिण मे विघ्नविनाशक गणेश को विराजमान करने के लिये आराधना करनी है । शमशान की भूमि पर यह मंत्र अंकित करना है- *।। "हूं हूं ह्रीं ह्रीं कालिके घोरदंस्ट्रे प्रचंडे चंडनायिकेदानवान द्वाराय हन हन शव शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हूं फट "।।* इसके बाद तीन बार वीरार्दन मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्पांजलि अर्पित करे (यहा पर वीरार्दान मंत्र नही दे रहा हू,उसे गोपनीय रख है )। इसके उपरांत बड़े विधि-विधान से पूर्वा दिशा मे श्मशान