(64 योगिनियां साधना )

(64 योगिनियां साधना )

प्राचीन तंत्र शास्त्र में 64 योगिनियां बताई गई हैं। कहा जाता है कि ये सभी आद्यशक्ति मां काली की ही अलग-अलग कला है। इनमें दस महाविद्याएं तथा सिद्ध विद्याएं भी शामिल हैं। तंत्र के अनुसार घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए मां आद्यशक्ति ने 64 रुप धारण किए थे, जो कालांतर में 64 योगिनी कहलाईं। तंत्र शास्त्र में किसी भी महाविद्या का पूजन आरंभ करने से पूर्व 64 योगिनियों को सिद्ध करने का विधान बताया गया है। इन्हें सिद्ध करने के बाद विश्व में ऐसा कोई काम नहीं जो साधक नहीं कर सकता, अर्थात् साधक स्वयं ही ईश्वरमय हो जाता है।

64 योगिनियों साधना के द्वारा वास्तु दोष, पितृदोष, कालसर्प दोष तथा कुंडली के अन्य सभी दोष दूर हो जाते हैं। इनके अलावा दिव्य दृष्टि (किसी का भी भूत, भविष्य या वर्तमान जान लेना) जैसी कई सिद्धियां बहुत ही आसानी से साधक के पास आ जाती है। परन्तु इन सिद्धियों का भूल कर भी दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। अन्यथा अनिष्ट होने की आशंका रहती है।

चौसठ योगिनियों के नाम इस प्रकार है-

(1) बहुरूपा (2) तारा (3) नर्मदा (4) यमुना (5) शांति (6) वारुणी (7) क्षेमकरी (8) ऐन्द्री
(9) वाराही (10) रणवीरा (11) वानरमुखी (12) वैष्णवी (13) कालरात्रि (14) वैद्यरूपा (15) चर्चिका (16) बेताली
(17) छिन्नमस्तिका (18) वृषवाहन (19) ज्वाला कामिनी (20) घटवारा (21) करकाली (22) सरस्वती (23) बिरूपा (24) कौवेरी
(25) भालुका (26) नारसिंही (27) बिराजा (28) विकटानन (29) महालक्ष्मी (30) कौमारी (31) महामाया (32) रति
(33) करकरी (34) सर्पश्या (35) यक्षिणी (36) विनायकी (37) विंध्यवासिनी (38) वीरकुमारी (39) माहेश्वरी (40) अम्बिका
(41) कामायनी (42) घटाबरी (43) स्तुति (44) काली (45) उमा (46) नारायणी (47) समुद्रा (48) ब्राह्मी
(49) ज्वालामुखी (50) आग्नेयी (51) अदिति (52) चन्द्रकान्ति (53) वायुवेगा (54) चामुण्डा (55) मूर्ति (56) गंगा
(57) धूमावती (58) गांधारी (59) सर्व मंगला (60) अजिता (61) सूर्यपुत्री (62) वायु वीणा (63) अघोर (64) भद्रकाली

तंत्र में 64 योगिनियों की साधना द्वारा मुख्यतः षटकर्मों सिद्ध किए जाते हैं। ये सभी अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न होने के कारण साधक को उसकी मनवांछित वरदान देने में सक्षम है। इन्हें सिद्ध कर लेने के बाद साधक जो भी चाहें कर सकता है। संक्षेप में इन्हीं को मातृका भी कहा जाता है और इनकी आराधना के द्वारा साधक विभिन्न प्रकार की दिव्य सिद्धियां प्राप्त कर चमत्कार दिखाने में सक्षम होते हैं।


64 योगिनियों की साधना सोमवार या अमावस्या या पूर्णिमा की रात्रि से आरंभ की जाती है। साधना आरंभ करने से पहले स्नान-ध्यान आदि से निवृत होकर अपने पितृगण, इष्टदेव तथा गुरु का आशीर्वाद लें। इसके बाद गणेश मंत्र तथा गुरुमंत्र का जप किया जाता है ताकि साधना में किसी भी प्रकार का विघ्न न आएं। इसके बाद भगवान शिव की पूजा करते हुए शिवलिंग पर जल तथा अष्टगंध युक्त चावल अर्पित करें। इसके बाद आपकी पूजा आरंभ होती है। अंत में जिस योगिनी को आपको सिद्ध करना हैं उसके मंत्र की कम से कम एक माला अथवा ग्यारह माला का जाप करें।

64 योगिनियों के मंत्र इस प्रकार हैं–

(1) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा।

(2) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा।

(3) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा।

(4) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा।

(5) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विरोधिनी विलासिनी स्वाहा।

(6) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा।

(7) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा।

(8) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा।

(9) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दीपा मुक्तिः रक्ता देहा स्वाहा।

(10) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा।

(11) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री घना महा जगदम्बा स्वाहा।

(12) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बलाका काम सेविता स्वाहा।

(13) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा।

(14) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा।

(15) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मिता तंत्र कौला दीक्षा स्वाहा।

(16) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महाकाली सिद्धेश्वरी स्वाहा।

(17) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कामेश्वरी सर्वशक्ति स्वाहा।

(18) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भगमालिनी तारिणी स्वाहा।

(19) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्यकलींना तंत्रार्पिता स्वाहा।

(20) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरुण्ड तत्त्व उत्तमा स्वाहा।

(21) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वह्निवासिनी शासिनि स्वाहा।

(22) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महवज्रेश्वरी रक्त देवी स्वाहा।

(23) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शिवदूती आदि शक्ति स्वाहा।

(24) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री त्वरिता ऊर्ध्वरेतादा स्वाहा।

(25) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुलसुंदरी कामिनी स्वाहा।

(26) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीलपताका सिद्धिदा स्वाहा।

(27) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्य जनन स्वरूपिणी स्वाहा।

(28) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विजया देवी वसुदा स्वाहा।

(29) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सर्वमङ्गला तन्त्रदा स्वाहा।

(30) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ज्वालामालिनी नागिनी स्वाहा।

(31) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चित्रा देवी रक्तपुजा स्वाहा।

(32) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ललिता कन्या शुक्रदा स्वाहा।

(33) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री डाकिनी मदसालिनी स्वाहा।

(34) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री राकिनी पापराशिनी स्वाहा।

(35) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लाकिनी सर्वतन्त्रेसी स्वाहा।

(36) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काकिनी नागनार्तिकी स्वाहा।

(37) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शाकिनी मित्ररूपिणी स्वाहा।

(38) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री हाकिनी मनोहारिणी स्वाहा।

(39) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री तारा योग रक्ता पूर्णा स्वाहा।

(40) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री षोडशी लतिका देवी स्वाहा।

(41) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भुवनेश्वरी मंत्रिणी स्वाहा।

(42) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री छिन्नमस्ता योनिवेगा स्वाहा।

(43) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरवी सत्य सुकरिणी स्वाहा।

(44) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री धूमावती कुण्डलिनी स्वाहा।

(45) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बगलामुखी गुरु मूर्ति स्वाहा।

(46) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातंगी कांटा युवती स्वाहा।

(47) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कमला शुक्ल संस्थिता स्वाहा।

(48) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री प्रकृति ब्रह्मेन्द्री देवी स्वाहा।

(49) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गायत्री नित्यचित्रिणी स्वाहा।

(50) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मोहिनी माता योगिनी स्वाहा।

(51) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सरस्वती स्वर्गदेवी स्वाहा।

(52) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अन्नपूर्णी शिवसंगी स्वाहा।

(53) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नारसिंही वामदेवी स्वाहा।

(54) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गंगा योनि स्वरूपिणी स्वाहा।

(55) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अपराजिता समाप्तिदा स्वाहा।

(56) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चामुंडा परि अंगनाथा स्वाहा।

(57) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वाराही सत्येकाकिनी स्वाहा।

(58) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कौमारी क्रिया शक्तिनि स्वाहा।

(59) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री इन्द्राणी मुक्ति नियन्त्रिणी स्वाहा।

(60) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ब्रह्माणी आनन्दा मूर्ती स्वाहा।

(61) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वैष्णवी सत्य रूपिणी स्वाहा।

(62) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा।

(63) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लक्ष्मी मनोरमायोनि स्वाहा।

(64) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दुर्गा सच्चिदानंद स्वाहा।

विधिवत मंत्र जाप पूर्ण करने के बाद भगवान शिव की आरती करें तथा साधना समाप्त होने के बाद शिवलिंग पर चढ़ाये गए चावल अलग से रख लें तथा अगले दिन बहते जल या नदी में प्रवाहित कर दें।

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