लक्ष्मी कृपा मंत्र
अनादिनिधनं सर्व लोक महेश्वरम् लोकाध्यक्षं स्तुवन्नित्यं सर्वदुःखातिगो भवेत् |
हमारी संस्कृति के कई आधार स्तंभ में से एक महत्वपूर्ण पक्ष पौराणिक साहित्य है, पौराणिक ऐतेहासिक द्रष्टान्त तथा कई प्रकार के आगमिक प्रक्रियाओ के संग्रह सम यह ग्रन्थ अपने आप में कई कई प्रकार के उच्चकोटि की घटनाओ का साक्षी बना देता है किसी भी साधक को. साथ ही साथ विविध व्यक्तित्व तथा उनसे सबंधित जीवन भी अद्भुत विवरण प्रस्तुत करते है. ऐसे ही एक अद्भुत व्यक्तित्व के धनि रहे है शांतनु पुत्र भीष्म. अपने समय में बल और साहस की साक्षात् मूर्ति के साथ साथ अपने जीवन चरित्र के कारण सर्वदा ही यह व्यक्तित्व अपने समय में तथा उसके बाद भी वन्दनीय रहे है. प्रस्तुत पंक्तियाँ उनके द्वारा उच्चारित की गई पंक्तियाँ है. धर्मराज को संबोधित करते हुवे उन्होंने यह भगवान श्री विष्णु के सबंध में बोला है. जो आदि- अनादी है, समय से परे है, जो सर्वत्र है, वह सभी लोक के स्वामी अर्थात आधिपत्य को धारण करने वाले सभी लोक के पालक अध्यक्ष श्री भगवान विष्णु है जो की अपने साधको के सभी दुःख सभी विषाद को पूर्ण रूप से दूर करने में समर्थ है.
निश्चय ही भीष्म का व्यक्तित्व एक अद्भुत व्यक्तित्व रहा है, आगम शिक्षा के अंतर्गत उन्होंने कई प्रकार साधना का अभ्यास किया था जिसके अंतर्गत शैव तथा वैष्णव दोनों ही मार्ग का अध्ययन रहा था. शैव साधनाओ के अंतर्गत दिव्य अस्त्र तथा युद्ध विज्ञान और राज तंत्र के अभ्यास के साथ ही साथ, वैष्णव तंत्र सबंधित पूर्ण वैभव तथा ऐश्वर्य प्राप्ति के साथ साथ जीवन में पूर्ण सुख की प्राप्ति से सबंधित साधनाओ का प्रयोग भी शामिल है, इसी लिए कई वैष्णव तथा शैव मार्ग के साधना प्रयोग का प्रणेता उनको माना जाता है. निश्चय ही उनके द्वारा किये गए प्रयोग अत्यधिक सिद्ध है, अपने असाधारण मातृ पक्ष के कारण जन्म से ही वे असहज रूप से उर्जात्मक व्यक्तित्व के धनि थे और इसी कारण विविध देवी देवताओं से सबंधित कई प्रकार के प्रयोग उन्होंने प्राप्त किये थे तथा उन्होंने सिद्ध किये थे. वैष्णव तंत्र का तो वह यूँ भी सुवर्ण समय हुवा करता था. इस प्रकार उस समय में निश्चय ही विविध तन्त्र साधनाओ के माध्यमसे पूर्ण ऐशवर्य की प्राप्ति की जाती थी. भगवान विष्णु से सबंधित कई कई प्रकार के प्रयोग तो प्रचलन में हे ही लेकिन लक्ष्मीवासुदेव प्रयोग अपने आप में एक अत्यधिक श्रेष्ठ प्रयोग है. सिद्धो के मध्य तो प्रचलित तथ्य है यह की लक्ष्मीवासुदेव सबंधित साधना प्रयोग भीष्म के द्वारा भी सम्प्पन किया गया था तथा कई प्रकार से इस प्रयोग की प्रशंशा भी की गई है.
इस प्रयोग के माध्यम से व्यक्ति को धन प्राप्ति के स्त्रोत सुलभ होते है तथा इस सबंध में अगर कोई बाधा आ रही है तो उसका निराकारण होता है. व्यापर के क्षेत्र में व्यक्ति को उन्नति की प्राप्ति होती है. इसके अलावा भी अगर कोई सम्पति या मकान आदि से धन प्राप्ति करने के इच्छुक व्यक्तियो के लिए यह उत्तम प्रयोग है. इसके साथ ही साथ, व्यक्ति के लिए यह प्रयोग इस द्रष्टि से भी महत्वपूर्ण है की अपने जीवनसाथी तथा घर परिवार से पूर्ण स्नेह प्राप्त होता रहे तथा घर में सुख शांति का वातावरण स्थापित रह सके इसके लिए भी यह प्रयोग महत्वपूर्ण है. इस द्रष्टि से सभी साधको के लिए आज के युग में यह एक वाराण स्वरुप प्रयोग है जिसे सभी साधको को पूर्ण श्रद्धा सह यह प्रयोग करना चाहिए.
यह साधना साधक किसी भी शुभदिन शुरू कर सकता है. यह तिन दिन का प्रयोग है.
साधक दिन या रात्रि के किसी भी समय में यह प्रयोग कर सकता है लेकिन रोज समय एक ही रहे.
साधक को स्नान कर के पीले वस्त्रों को धारण करना चाहिए तथा पीला आसन बिछा कर उत्तर की तरफ मुख कर बैठना चाहिए.
इसके बाद साधक अपने सामने एक बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाए. इस पर साधक भगवान श्री लक्ष्मीवासुदेव का कोई चित्र स्थापित करे. साथ ही साथ प्रामाणिक श्रीयंत्र का भी स्थापित करे, श्रीयंत्र कोई भी हो लेकिन वह पूर्ण प्राण प्रतिष्ठित होना चाहिए. इसके बाद साधक सदगुरुदेव का पूजन करे तथा गणेश एवं श्रीयंत्र का भी पूजन करे. प्रस्तुत प्रयोग में साधक को श्रीयंत्र को ही लक्ष्मी तथा भगवान विष्णु का संयुक्त स्वरुप मानते हुवे सभी प्रक्रियाएं करनी है. पूजनमें साधक को पीले रंग के पुष्प अर्पित करने चाहिए. इसके बाद गुरु मंत्र का जाप करे. जाप पूर्ण होने पर साधक साधना में पूर्ण सफलता की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करे. इसके बाद साधक न्यास करे.
करन्यास
ह्रीं श्रीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
ह्रीं श्रीं तर्जनीभ्यां नमः
ह्रीं श्रीं सर्वानन्दमयि मध्यमाभ्यां नमः
ह्रीं श्रीं अनामिकाभ्यां नमः
ह्रीं श्रीं कनिष्टकाभ्यां नमः
ह्रीं श्रीं करतल करपृष्ठाभ्यां नमः
हृदयादिन्यास
ह्रीं श्रीं हृदयाय नमः
ह्रीं श्रीं शिरसे स्वाहा
ह्रीं श्रीं शिखायै वषट्
ह्रीं श्रीं कवचाय हूं
ह्रीं श्रीं नेत्रत्रयाय वौषट्
ह्रीं श्रीं अस्त्राय फट्
न्यास करने के बाद साधक लक्ष्मी के साथ विराजमान भगवानश्री विष्णु का ध्यान करे. ध्यान के बाद साधक को मूल मन्त्र का जाप करना है. साधक को २१ माला मन्त्र का जाप करना है. यह जाप साधक स्फटिक माला से या कमलगट्टे की माला से सम्प्पन करे.
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीवासुदेवाय श्रीं ह्रीं नमः
(om hreem shreem lakshmiVaasudevaay shreem hreem namah)
जाप पूर्ण होने पर साधक फिर से श्रीयंत्र का पूजन करे, गुरुपूजन तथा गुरुमन्त्र का जाप कर आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करे. इस प्रकार यह प्रयोग ३ दिन करना चाहिए