शत्रु बाधा निवारण प्रयोग

शत्रु-बाधा-निवारण-प्रयोग
भगवान भैरव की साधना वशीकरण, उच्चाटन, सम्मोहन, स्तंभन, आकर्षण और मारण जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए भैरव साधना की जाती है। भैरव साधना से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। जन्म कुण्डली में छठा भाव शत्रु का भाव होता है। लग्न में षट भाव भी शत्रु का है। इस भाव के अधिपति, भाव में स्थित ग्रह और उनकी दृष्टि से शत्रु सम्बन्धी कष्ट उत्पन्न होते हैं। षष्ठस्थ-षष्ठेश सम्बन्धियों को शत्रु बनाता है। यह शत्रुता कई कारणें से हो सकती है। आपकी प्रगति कभी-कभी दूसरों को अच्छी नहीं लगती और आपकी प्रगति को प्रभावित करने के लिए तांत्रिक क्रियाओं का सहारा लेकर आपको प्रभावित करते हैं।
तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव से व्यवसाय, धंधे में आशानुरूप प्रगति नहीं होती। दिया हुआ रुपया नहीं लौटता, रोग या विघ्न से आप पीड़ित रहते हैं अथवा बेकार के मुकद्मेबाजी में धन और समय की बर्बादी हो सकती है। इस प्रकार के शत्रु बाधा निवारण के लिए भैरव साधना फलदायी मानी गई।
साधना विधान
भैरव शत्रु बाधा निवारण यह प्रयोग किसी भी रविवार,  मंगलवार अथवा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सम्पन्न किया जा सकता है।
भैरव साधना मुख्यतः रात्रि काल में ही सम्पन्न की जाती है परन्तु इस प्रयोग को आप अपनी सुविधानुसार दिन में भी सम्पन्न कर सकते हैं।
साधना काल में साधक स्नान कर स्वच्छ लाल वस्त्र धारण कर, दक्षिणाभिमुख होकर बैठ जाए।
अपने सामने एक बाजोट पर सर्वप्रथम गीली मिट्टी की ढेरी बनाकर उस पर ‘काल भैरव गुटिका’ स्थापित करें।
उसके चारों ओर तिल की पांच ढेरियां बना लें तथा प्रत्येक पर एक-एक आक्रान्त चक्र स्थापित करें।
बाजोट पर तेल का दीपक प्रज्वलित करें तथा गुग्गल धूप तथा अगरबत्ती जला दें।
सर्वप्रथम निम्न मंत्र बोलकर भैरव का आह्वान करें –

आह्वान मंत्र
आयाहि भगवन् रुद्रो भैरवः भैरवीपते।
प्रसन्नोभव देवेश नमस्तुभ्यं कृपानिधि॥
भैरव आह्वान के पश्‍चात् साधक भैरव का ध्यान करते हुए अपनी शत्रु बाधा शांति हेतु भैरव से प्रार्थना करें तथा हाथ में जल लेकर निम्न संकल्प करें –

संकल्प
मैं अपनी अमुक शत्रु-बाधा के निवारण हेतु काल भैरव प्रयोग सम्पन्न कर रहा हूं।
बाधा निवारण संकल्प के पश्‍चात् ‘काल भैरव गुटिका’ का सिन्दूर लगाकर पूजन करें। उस सिन्दूर से स्वयं के मस्तक पर भी तिलक लगाये।
इसके पश्‍चात् पांचों आक्रान्त चक्र का सिन्दूर, कुंकुम, काजल, सफेद पुष्प से पूजन करें।
अब एक पात्र में काली सरसों, काले तिल मिलाएं, उसमें थोड़ा तेल डालें, थोड़ा सिन्दूर डालकर उसे मिला दें, इस मिश्रण को निम्न भैरव मंत्र का जप करते हुए ‘काल भैरव गुटिका’ के समक्ष थोड़ा-थोड़ा कर 21 बार अर्पित करते रहें –
विभूति भूति नाशाय, दुष्ट क्षय कारकं, महाभैरव नमः। सर्व दुष्ट विनाशनं सेवकं सर्वसिद्धि कुरु। ॐ काल भैरव, बटुक भैरव, भूत-भैरव, महा-भैरव महा-भय विनाशनं देवता सर्व सिद्धिर्भवेत्।
उपरोक्त मंत्र जप के पश्‍चात् भैरव के निम्न मंत्र का 15 मिनट तक जप करें –

मंत्र
॥ॐ हृीं भैरव भैरव भयकरहर मां रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा॥

इस प्रकार जप पूर्ण कर भैरव को दूध से बना नैवेद्य अर्पित करें। आप स्वयं भी इस नैवेद्य को ग्रहण करें। इस प्रकार यह प्रयोग सम्पन्न होता है। प्रयोग समाप्ति के पश्‍चात् समस्त सामग्री को किसी काले वस्त्र में बांध कर अगले दिन जल में विसर्जित कर दें।
शत्रु बाधा निवारण का यह बहुत ही तीव्र प्रयोग है, साधकों ने इस प्रयोग को सम्पन्न कर अपनी बाधाओं को जड़ मूल से समाप्त किया है। इस सम्बन्ध में अनेक साधकों के पत्र निरन्तर पत्रिका कार्यालय में प्राप्त होते रहते हैं। भैरव के इस विशिष्ट प्रयोग को किसी को हानि पहुंचाने या उसको नुकसान कराने के लिये नहीं करना चाहिए।

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