कर्ण पिशाचिनी साधना
कर्ण पिशाचिनी साधना
यह अत्यंत उग्र साधना है और शीघ्र फलप्रद है,इस साधना से सिद्धि ना मिले यह तो सम्भव ही नहीं है इसलिये यह साधना संपन्न करना योग्य है.यह साधना ऐसे व्यक्तिओ को सिद्ध है जिनके पास कोई भी जाये तो वह साधक बहुत-भविष्य-वर्तमान काल सहज ही बता देते है.
यह साधना मै भी करना चाहता हु और यह साधना संपन्न करने का योग्य समय श्रावन माह है जो अभी आनेवाला है,यह माह हर तांत्रिक साधना के लिए उत्तम माना जाता है.श्रावन माह में सभी तांत्रिक शिव साधना और इतर योनि साधना ही करते है,महत्वपूर्ण बात यह है की इस साधना में किसी भी प्रकार का कोई खतरा नहीं है और साधना सिद्ध होने के बाद साधक के परिवार को भी डरने का जरुरत नहीं है क्युकी इस मन्त्र के प्रभाव से साधक का सदैव रक्षा होता है.
मंत्र-
।। ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नृम ठं ठं नमो देव पुत्री स्वर्ग निवासिनी,सर्व नर नारी मुख वार्ताली,वार्ता कथय,सप्त समुद्रान दर्शय दर्शय,ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नृम ठं ठं फट स्वाहा ।।
साधना विधि-
एक वाराह (जंगली सूअर/शूकर दंत) दन्त अपने आसन के निचे रखे और साथ में सेई का काटा रखिये,आसन लाल रंग का हो माला रुद्राक्ष या लाल हकीक का हो,वस्त्र भी लाल रंग के हो,दिशा दक्षिण हो,सामने तेल का दिया सुगन्धित इत्र डालकर जलाये और धुप भी जलाये,साधना शुक्रवार से प्रारम्भ करे,नित्य २१ माला मन्त्र जाप करना आवश्यक है.वाराह दन्त वाराह के नैसर्गिक मृत्यु से प्राप्त हो यह इस साधना का गोपनीय सूत्र है.
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