शिव शाबर मंत्र सिद्धि
शिव शाबर मंत्र सिद्धि
इंसान के जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष यह चुनने की कोशिश है कि क्या सुंदर है और क्या भद्दा, क्या अच्छा है और क्या बुरा? लेकिन अगर आप हर चीज के इस भयंकर संगम वाली शख्सियत को केवल स्वीकार कर लेते हैं तो फिर आपको कोई समस्या नहीं रहेगी।
समस्या सिर्फ आपके साथ है कि आप किसे अपनाएं व किसे छोड़ें और यह समस्या मानसिक समस्या है, न कि जीवन से जुड़ी समस्या। यहां तक कि अगर आपका दुश्मन भी आपके बगल में बैठा है तो आपके भीतर मौजूद जीवन को उससे भी कोई दिक्कत नहीं होगी। आपका दुश्मन जो सांस छोड़ता है, उसे आप लेते हैं। आपके दोस्त द्वारा छोड़ी गई सांसें आपके दुश्मन द्वारा छोड़ी गई सांसों से बेहतर नहीं होती है। दिक्कत सिर्फ मानसिक या कहें मनोवैज्ञानिक स्तर पर है। अस्तित्व के स्तर पर देखा जाए तो कोई समस्या नहीं है।
घोर का मतलब है – भयंकर। अघोरी का मतलब है कि ‘जो भयंकरता से परे हो’। शिव एक अघोरी हैं, वह भयंकरता से परे हैं। भयंकरता उन्हें छू भी नहीं सकती।
एक अघोरी जब इस अस्तित्व को अपनाता है तो वह उससे प्रेम के चलते नहीं अपनाता, वह इतना सतही या कहें उथला नहीं है, बल्कि वह जीवन को अपनाता है। वह अपने भोजन और मल को एक ही तरह से देखता है। उसके लिए जिंदा और मरे हुए शरीर में कोई अंतर नहीं है। वह एक सजी संवरी देह और व्यक्ति को उसी भाव से देखता है, जैसे एक सड़े हुए शरीर को। इसकी सीधी सी वजह है कि वह पूरी तरह से जीवन बन जाना चाहता है। वह अपनी दिमागी या मानसिक सोचों के जाल में नहीं फंसना चाहता।
कोई भी चीज उनमें घृणा नहीं पैदा कर सकती। वह हर चीज को, सबको अपनाते हैं। ऐसा वह किसी सहानुभूति, करुणा या भावनाओं के चलते नहीं करते, जैसा कि आप सोचते होंगे। वे सहज रूप से ऐसा करते हैं, क्योंकि वो जीवन की तरह हैं। जीवन सहज ही हरेक को गले लगाता व अपनाता है।
शिव जी का व्यक्तित्व विशाल है, अनेक आयामों से देखकर उनके अनेक नाम रखे गये हैं:
1. महेश्वर- महाभूतों के ईश्वर होने के कारण तथा सूंपूर्ण लोकों की महिमा से युक्त।
2. बडवामुख- समुद्र में स्थित मुख जलमय हविष्य का पान करता है।
3. अनंत रुद्र- यजुर्वेद में शतरूप्रिय नामक स्तुति है।
4. विभु और प्रभु- विश्व व्यापक होने के कारण।
5. पशुपति- सर्पपशुओं का पालन करने के कारण।
6. बहुरूप- अनेक रूप होने के कारण।
7. सर्वविश्वरूप- सब लोकों में समाविष्ट हैं।
8. धूर्जटि- धूम्रवर्ण हैं।
9. त्र्यंबक- आकाश, जल, पृथ्वी तीनों अंबास्वरूपा देवियों को अपनाते हैं।
10. शिव- कल्याणकारी, समृद्धि देनेवाले हैं।
11. महादेव- महान विश्व का पालन करते हैं।
12. स्थाणु- लिंगमय शरीर सदैव स्थिर रहता है।
13. व्योमकेश- सूर्य-चंद्रमा की किरणें जो कि आकाश में प्रकाशित होती हैं, उनके केश माने गये हैं।
14. भूतभव्यभवोद्भय- तीनों कालों में जगत् का विस्तार करनेवाले हैं।
15. वृषाकपि- कपि अर्थात श्रेष्ठ, वृष धर्म का नाम है।
16. हर- सब देवताओं को काबू में करके उनका ऐश्वर्य हरनेवाले।
17. त्रिनेत्र- अपने ललाट पर बलपूर्वक तीसरा नेत्र उत्पन्न किया था।
18. रुद्र- रौद्र भाव के कारण।
19. सोम- जंघा से ऊपर का भाग सोममय है। वह देवताओं के काम आता है और अग्नि- जंघा के नीचे का भाग अग्निवत् है। मनुष्य-लोक में अग्नि अथवा 'घोर' शरीर का उपयोग होता है।
20. श्रीकंठ- शिव की श्री प्राप्त करने की इच्छा से इन्द्र ने वज्र का प्रहार किया था। वज्र शिव ने कंठ को दग्ध कर गया था, अत: वे श्रीकंठ कहलाते हैं।
ऐसे अनेको नामो से शिव जी देवाधिदेव महादेव कहलाते है । अभी अमावस्या के बाद हम लोगो का श्रावण माह शुरू होगा और कुछ लोगो का श्रावण माह गुरुपूर्णिमा के बाद से ही शुरू हो गया है । आनेवाली अमावस्या के बाद पूर्णिमा तक बहोत ही अच्छे शुभ मुहूर्त है और ऐसे दुर्लभ मुहूर्त का लाभ प्रत्येक साधक को उठाना ही चाहिए ।
आज यहां दिया जानेवाला मंत्र साधना एक दुर्लभ साधना है,जिसका प्रभाव साधक के जीवन मे उसे कई सारे समस्याओं से मुक्ति दिला सकता है । जो शिवभक्त है,उनके लिए तो यह शाबर मंत्र शिवाशिष है । साधना संकल्प युक्त होकर सम्पन्न करे अर्थात मंत्र जाप से पूर्व दाहिने हाथ मे जल लेकर संकल्प करें "मैं अमुक गोत्रीय, अमुक पिता का पुत्र और अमुक नाम का साधक जीवन के समस्त दुःखो के नाश हेतू यह साधना प्रयोग सम्पन्न कर रहा हूं " । जिन्हें गोत्र पता ना हो वह साधक अपने जाती का उच्चारण करे , जिनके पिता का स्वर्गवास हुआ हो वह अपनी माता का नाम ले सकते है या किसी साधक के माता-पिता इस दुनिया मे ना हो तो उस जगह "अमुक गुरु का शिष्य" उच्चारण करे ।
साधना अमावस्या के दिन से शुरू करे,सफेद वस्त्र और आसान आवश्यक है । किसी भी धातु के प्लेट में अष्टगंध से स्वस्तिक बनाये और उसपर किसी भी प्रकार का शिवलिंग स्थापित करे । मंत्र जाप से पूर्व शिव मानस पूजन अवश्य करे और शिव मानस पूजन हेतु आपको सिर्फ शिव मानस पूजन स्तोत्र पढ़ना है ।
“शिव मानस पूजा” अर्थात्; मन से भगवान की पूजा । मन से कल्पित सामग्री द्वारा की जाने वाली पूजा को ही मानस पूजा कहा जाता है। मानस पूजा की रचना आदि गुरु शंकराचार्य जी ने की है। “शिव मानस पूजा” में हम प्रभू को भक्ति द्वारा मानसिक रूप से तैयार की हुई वस्तुएं समर्पित करते हैं; अर्थात; किसी भी बाहरी वस्तुओं या पदार्थो का उपयोग नहीं किया जाता। मात्र मन के भावों मानस से ही भगवान को सभी पदार्थ अर्पित किए जाते हैं। शास्त्रों में भगवान “शिव मानस पूजा” को हजार गुना अधिक महत्वपूर्ण बताया गया है। आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित “शिव मानस पूजा” मंत्र में मन और मानसिक भावों से शिव की पूजा की गई है। इस पूजा की विशेषता यह है कि; इसमें भक्त भगवान को बिना कुछ अर्पित किए बिना मन से अपना सब कुछ सौंप देता है।
आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचे गए इस स्त्रोत में भगवान की ऐसी पूजा है जिसमें भक्त किसी भौतिक वस्तु को अर्पित किये बिना भी, मन से अपनी पूजा पूर्ण कर सकता है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रचित शिव मानस पूजा, भगवान शिव की एक अनुठी स्तुति है। यह स्तुति शिव भक्ति मार्ग के अत्यंत सरल एवं एक अत्यंत गुढ रहस्य को समझाता है। यह स्तुति भगवान भोलेनाथ की महान उदारता को प्रस्तुत करती है।
इस स्तुति को पढ़ते हुए भक्तों द्वारा भगवान शिव को श्रद्धापूर्वक मानसिक रूप से समस्त पंचामृत दिव्य सामग्री समर्पित की जाती है।
“शिव मानस पूजा” में मन: कल्पित यदि एक फूल भी चढ़ा दिया जाए, तो करोड़ों बाहरी फूल चढ़ाने के बराबर होता है। इसी प्रकार मानस- चंदन, धूप, दीप नैवेद्य भी भगवान को करोड़ गुना अधिक संतोष देते हैं। अत: मानस-पूजा बहुत अपेक्षित है।
वस्तुत: भगवान को किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं, वे तो भाव के भूखे हैं। संसार में ऐसे दिव्य पदार्थ उपलब्ध नहीं हैं, जिनसे परमेश्वर की पूजा की जा सके, इसलिए पुराणों में मानस-पूजा का विशेष महत्त्व माना गया है।
श्री शिव मानस पूजा स्तोत्र
रत्नैः कल्पित मासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्यांबरं
नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदांकितं चंदनम् ।
जाजीचंपकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा दीपं
देवदयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम् ॥ १ ।।
सौवर्णे मणिखंडरत्नरचिते पात्रे घृतं पायसं भक्ष्यं
पंचविधं पयोदधियुतं रंभाफलं स्वादुदम् ।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडोज्ज्वलं
तांबूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभोस्वीकुरु ॥ २ ॥
छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं
वीणाभेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तधा ।
साष्टांगं प्रणतिः स्तुति र्बहुविधा एतत्समस्तं
मया संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो ॥ ३ ॥
आत्मा त्वं गिरिजा मति स्सहचराः प्राणाश्शरीरं गृहं पूजते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधि स्थितिः ।
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वागिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भोतवाराधनम् ॥ ४ ॥
करचरणकृतं वा कर्म वाक्कायजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम् ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व
शिवशिव करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥ ५ ॥
:: इति श्री शिवमानस पूजा स्तोत्रं संपूर्णम् ::
शिव मानस पूजन के बाद आपको दिए जाने वाले मंत्र का अमावस्या से पूर्णिमा तक रोज काम से 108 बार जाप करे । कोई साधक ज्यादा मंत्र जाप करना चाहता है तो वह कर सकता है,इस मंत्र के जाप हेतु आप रुद्राक्ष माला का उपयोग कर सकते है या फिर माला ना होतो तो 30-40 मिनट तक भी जाप कर सकते हो ।
मंत्र-
।। ॐ नमो आदेश गुरुजी को आदेश, नाथो के नाथ आदिनाथ कैलाशपती, गंगाधारी पवित्र करे सिद्धि हमारी ,डम-डम डमरू बजाके भोलेनाथ आओ,त्रिशूल चलाके अमुक बाधा भगाओ,मेरी भक्ति गुरु की शक्ति,चलो मंत्र ईश्वरी वाचा ।।
मंत्र छोटा है परंतु अत्यंत प्रभावशाली है,अमावस्या से पूर्णिमा तक जाप करने से मंत्र सिद्धि हो जाती है । इस मंत्र के सिद्धि से जिस साधक ने कोई भी सिद्धि प्राप्त की हो तो उसकी वह सिद्धि पवित्र होकर शक्तिशाली हो जाती है । मंत्र में अमुक के जगह पर आप किसी भी बाधा का उच्चारण कर सकते है जैसे भूत बाधा, तंत्र बाधा, नोकरी प्राप्ति में आनेवाली बाधा,व्यवसायिक बाधा,पढ़ाई में आनेवाली बाधा,विवाह बाधा/प्रेम विवाह बाधा,साधना सिद्धि बाधा,आजीविका बाधा और रोग बाधा......।
मंत्र जाप के समय साधक का मुँह उत्तर दिशा के तरफ हो और हो सके तो साधना के आखरी दिन साधक 108 आहुतियां शुद्ध देसी गाय के घी का अवश्य ही दे तो मंत्र सिद्धि पुर्ण हो सकती है ।
इस तरह से साधना सम्पन्न कर लाभ उठाएं ।
फेसबुक और व्हाट्सएप के भूखे कथित तांत्रिकों ये साधना तुम लोग भी कर लो,जितना यहां से मंत्र चुराकर पोस्ट करते हो उससे अच्छा तो उतनी बार पढकर पोस्ट किया होता तो कुछ काम अच्छे तुम्हारे भी अब तक बन जाते थे ।
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